रस | स्थायी भाव |
1. शृंगार | रति (प्रेम) |
2. शांत | निर्वेद |
3. करूण | शोक |
4. हास्य | हास |
5. वीर | उत्साह |
6. रौद्र | क्रोध |
7. भयानक | भय |
8. बीभत्स | घृणा, जुगुप्सा |
9. अद्भुत | आश्चर्य |
10. वात्सल्य | ममत्व |
11. भक्ति | अनुराग |
– सूरदास
मधुरता मय था मृदु बोलना।
अमृत सिंचित सी मुस्कान थी।
समद थी जनमानस मोहती।
कमल लोचन की कमनीयता।।
– अयोध्यासिह उपाध्याय ‘हरिऔध’
वीर रस : किसी पद में वर्णित प्रसंग हमारे हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित होते हैं।
वीर रस के अंग (अवयव)
उदा. :
आजादी की राह चले तुम,
सुख से मुख को मोड़ चले तुम,
“नहीं रहूँ परतंत्र किसी का’
तेरा घोष अति प्रखर है
राजा तेरा नाम अमर है।
– डॉ. जयंत निर्वाण
बुझी राख मत हमें समझना, अंगारों के गोले हैं।
देश आन पर मिटने वाले, हम बारूदी शोले हैं।
– सुरेंद्रनाथ सिंह
करूण रस : किसी प्रियजन या इष्ट के कष्ट, शोक, दुख, मृत्युजनित प्रसंग के कारण अथवा किसी प्रकार की अनिष्ट आशंका के कारण हृदय में पीड़ा या क्षोभ का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ करूण रस की अभिव्यंजना होती है।
करूण रस के अंग (अवयव)
उदा. :
हाय राम कैसे झेलें हम अपनी लज्जा अपना शोक,
गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक
– अज्ञात
मरते कोमल वत्स यहाँ
बचती न जवानी परदेशी!
माया के मोहक वन की
क्या कहूँ कहानी परदेशी?
– रामधारी सिंह ‘दिनकर’
हास्य रस : जब काव्य में किसी की विचित्र वेशभूषा, अटपटी आकृति, क्रिया कलाप, रूप-रंग, वाणी एवं व्यवहार को देखकर, सुनकर, पढ़कर हृदय में हास्य का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ हास्य रस की निर्मिति होती है। स्वभावत: सबसे अधिक सुखात्मक रस है यह।
हास्य रस के अंग (अवयव)
उदा. :
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे,
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान थे।
रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए।
– हुल्लड़ मुरादाबादी
सुबह से शाम तक पप्पू जप रहा भगवान का नाम।
खा रहा बार-बार बादाम, लगा रहा कोई बाम।।
घर वाले समझ गए कि आ गया है एग्जाम।
आ गया है एग्जाम अत: पप्पू का सिर है जाम।।
– सुरेंद्र रघुवंशी
भयानक रस : जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फल स्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है। इसके अंतर्गत कंपन, पसीना छूटना, मुँह सूखना, चिंता आदि भाव उत्पन्न होते हैं।
भयानक रस के अंग (अवयव)
उदा. :
चिंग्घाड भगा भय से हाथी,
लेकर अंकुश पिलावन गिरा।
झटका लग गया, फटी झालर
हौदा गिर गया, निशान गिरा।।
– अज्ञात
आगे पहाड़ को पा धारा रूकी हुई है।
बल-पुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है।
अग्निस्फुलिंग रज का बुझ ढेर हो रहा है।
है रो रही जवानी, अंधेर हो रहा है।
– रामधारी सिंह ‘दिनकर’