Balbharti Maharashtra State Board Class 9 Hindi Solutions Lokbharti Chapter 3 कबीर Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Lokbharti 9th Std Digest Chapter 3 कबीर Textbook Questions and Answers

पठनीय :

सूचना के अनुसार कृतीयँ :

1. संजाल :

प्रश्न  1.
संजाल :

उत्तर:

2. परिच्छेद पढ़कर प्राप्त होने वाली प्रेरणा लिखिए।

प्रश्न 1.
परिच्छेद पढ़कर प्राप्त होने वाली प्रेरणा लिखिए।
उत्तर:
कबीर जी के उपदेशों और उनके व्यक्तित्व से सभी को प्रेरणा मिलती है। हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में मोह-माया को बीच में नहीं आने देना चाहिए क्योंकि यह हमारे मार्ग में बाधक बन सकती है। संसार की टिप्पणियों की परवाह न करके अपना कर्म करते रहना चाहिए। स्वयं पर विश्वास होना चाहिए। गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान और अपनी साधना को संदेह की नज़रों से नहीं देखना चाहिए। यदि मनुष्य में आत्मविश्वास है तो वह किसी भी विकट संग्राम स्थली तक पहुंच कर विजयी हो सकता है।

लेखनीय :

‘कबीर संत ही नहीं समाज सुधारक भी थे’, इस पर अपने विचार लिखिए ।

प्रश्न 1.
‘कबीर संत ही नहीं समाज सुधारक भी थे’, इस पर अपने विचार लिखिए ।
उत्तर:
कबीरदास जी एक संत होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने ऐसी बहुत-सी बातें कही हैं जिनका सही उपयोग किया जाए तो समाज सुधार में सहायता मिल सकती है। वे स्पष्टवादी व निर्भीक थे, कबीर जी को संस्कारों की विचारहीन गुलामी पसंद नहीं थी, वे विचारहीन संस्कारों से मुक्त मनुष्यता को ही प्रेमभक्ति का पात्र मानते थे। उन्होंने भेदभाव को भुलाकर हमेशा भाईचारे के साथ रहने की सीख दी है। सामाजिक विषमता को दूर करना ही उनकी पहली प्राथमिकता थी। उनके विचार आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है।

संभाषणीय :

दोहों की प्रतियोगिता के संदर्भ में आपस में चर्चा संभाषणीय कीजिए।

प्रश्न 1.
दोहों की प्रतियोगिता के संदर्भ में आपस में चर्चा संभाषणीय कीजिए।
उत्तर:

मौलिक सृजन :

प्रश्न 1.
‘सतों के वचन समाज परिवर्तन में सहायक होते हैं। इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तरः
सभ्यता के प्रभातकाल से ही मानवीय, संवेदनात्मक प्रेमिल सहिष्णु, त्याग, क्षमा, दया, तथा सद्व्यवहार को महत्व देने वाले संतों का आर्विभाव इस भारत भूमि पर हुआ है। इनमें मुख्य थे कबीर, तुकाराम, गुरूनानक, रैदास इत्यादि। इन्होंने अपने वचनों द्वारा समाज को हमेशा परिवर्तित करने का प्रयास किया। इनमें सबसे पहला नाम आता है संत कबीर का। कबीर ने इस समय समाज में फैले अंधविश्वास और रूढ़ीवादी परंपरा पर गहरा आघात किया।

यही इस बात का साक्षी है कि समय-समय पर इस धरती पर महान संतों ने जन्म लिया और अपने विचारों तथा उपदेशों के जरिए समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। इन संतों ने लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि अंधविश्वासों तथा कुरीतियों से जकड़ा समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता है। इसके लिए समाज में खुलापन होना तथा लोगों का समझदार होना आवश्यक है। इस प्रकार संतों के वचन समाज परिवर्तन में अवश्य सहायक होते हैं।

आसपास :

मन की एकाग्रता बढ़ाने की कार्य पद्धति की जानकारी अंतरजाल/यू ट्यूब से प्राप्त कीजिए।

प्रश्न 1.
मन की एकाग्रता बढ़ाने की कार्य पद्धति की जानकारी अंतरजाल/यू ट्यूब से प्राप्त कीजिए।

पाठ के आँगन में :

1. सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए  :

संजाल :

प्रश्न 1.
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए  :

संजाल :

उत्तर:

2. सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए : 

प्रश्न क.
कबीर के मतानुसार प्रेम किसी, …….
1. खेत में नहीं उपजता।
2. गमले में नहीं उपजता।
3. बाग में नहीं उपजता।
उत्तर:
1. खेत में नहीं उपजता।

प्रश्न ख.
कबीर जिज्ञासु थे, …..
1. मिथ्या के।
2. सत्य के।
3. कथ्य के।
उत्तर:
2. सत्य के।

पाठ से आगे :

कबीर जी की रचनाएँ यू टूयूब पर सुनिए ।

प्रश्न 1.
कबीर जी की रचनाएँ यू टूयूब पर सुनिए ।

भाषा बिंदु :

रेखांकित शब्दों से उपसर्ग और प्रत्यय अलग करके लिखिए।

प्रश्न 1.
रेखांकित शब्दों से उपसर्ग और प्रत्यय अलग करके लिखिए।


उत्तर:

Hindi Lokbharti 9th Answers Chapter 3 कबीर Additional Important Questions and Answers

(क) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1) आकलन कृति

प्रश्न 1.
उचित पर्याय चुनकर वाक्य फिर से लिखिए।

i. कबीरदास की वाणी वह लता है, जो ………..
(क) सदैव हरी-भरी रहती है।
(ख) जीवन में रस भर देती है।
(ग) योग के क्षेत्र में भक्ति का बीज पड़ने से अंकुरित हुई थी।
उत्तर:
कबीरदास की वाणी वह लता है जो योग के क्षेत्र में भक्ति का बीज पड़ने से अंकुरित हुई थी।

ii. उत्तर के हठयोगियों के लिए समाज की ऊँच-नीच भावना, मजाक और …………….
(क) आक्रमण का विषय था।
(ख) मुक्ति का मार्ग था।
(ग) कठोर मार्ग था।
उत्तर:
उत्तर के हठयोगियों के लिए समाज की ऊँच-नीच भावना, मजाक और आक्रमण का विषय था।

प्रश्न 2.
चौखट पूर्ण कीजिए
उत्तर:

प्रश्न 3.
सत्य या असत्य पहचानिए।

उत्तर:

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:

प्रश्न 5.
निम्नलिखित विधानों को पाठ में आए घटनाक्रम के अनुसार लिखिए।

उत्तर:

(ख) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1) आकलन कृति

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:

प्रश्न 2.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:


कृति (2) स्वमत अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.
कबीर दास जी फक्कड़ स्वभाव के थे, इस पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
कबीर दास जी फक्कड़ स्वभाव के थे। अच्छा हो या बुरा, सत्य हो या असत्य, जिससे एक बार चिपट गए उससे जिंदगी भर चिपटे रहो, यह सिद्धांत उन्हें मान्य नहीं था। वे सत्य के जिज्ञासु थे। कबीर को शांतिमय और सादा जीवन पसंद था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज अपने देश में ही नहीं विदेशों में भी उन्हें सम्मान पूर्वक याद किया जाता है। कबीर आनंदमय लोक की बातें करते थे, जो साधारण मनुष्यों की पहुंच के बहुत ऊपर है।

(ग) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1) आकलन कृति

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:

प्रश्न 2.
उचित पर्याय चुनकर लिखिए।

i. केवल शारीरिक और मानसिक कवायद से दिखने वाली ज्योति ………….. है।
(क) गगन ज्योति की चमक।
(ख) जड़ चित्त की कल्पना-मात्र।
(ग) आत्मा की शांति।
उत्तर:
(ख) जड़ चित्त की कल्पना-मात्र।

ii. कबीर की यह घर-फूंक मस्ती, फक्कड़ना लापरवाही और निर्मम अक्खड़ता परिणाम थी –
(क) उनके धैर्य का।
(ख) उनके क्रोध का।
(ग) उनके अखंड आत्मविश्वास का।
उत्तर:
(ग) उनके अखंड आत्मविश्वास का।

प्रश्न 3.
सत्य/असत्य पहचानकर लिखिए।

उत्तर:

प्रश्न 4.
संजाल पूर्ण कीजिए।
उत्तर:

प्रश्न 5.
चौखट पूर्ण कीजिए ।
उत्तर:

(घ) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।

कृति (1) आकलन कृति

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:

प्रश्न 2.
सत्य असत्य पहचानकर लिखिए।
i. प्रेम पाने के लिए राजा हो या प्रजा उसे सिर्फ एक शर्त माननी होगी, वह शर्त है सिर उतारकर धरती पर रख दें।
ii. विश्वास जिसमें संकोच है, द्विधा है, बाधा है।
उत्तर:
i. सत्य
ii. असत्य

प्रश्न 3.
सही विकल्प चुनकर लिखिए।
i. विश्वास ही इस प्रेम की,
(क) नींव है।
(ख) कुंजी है।
(ग) भक्ति है।
उत्तर:
(ख) कुंजी है।

प्रश्न 4.
समझकर लिखिए।
i. वे कायर है
उत्तरः
(क) जिसमें साहस नहीं।
(ख) जिसे अखंड प्रेम के ऊपर विश्वास नहीं।

ii. प्रेमरूपी मदिरा की विशेषता
उत्तरः
वह ज्ञान के गुण से तैयार की गई थी।

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दूबे-का-छपरा नामक ग्राम में हुआ था। द्विवेदी जी हिंदी के शीर्षस्थ साहित्यकारों में से एक हैं। उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था। वे उच्चकोटि के निबंधकार, उपन्यासकार, आलोचक, चिंतक एवं शोधकर्ता थे।
प्रमुख कृतियाँ : निबंध – ‘अशोक के फूल’, ‘कल्पलता’, ‘विचार प्रवाह’ आदि।
उपन्यास – ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारुचंद्र लेख’, ‘पुनर्नवा’।
आलोचना और साहित्य इतिहास – मेघदूत एक पुरानी कहानी, सूर साहित्य आदि।

गद्य-परिचय :

आलोचना किसी विषय वस्तु के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए उसके गुण-दोष एवं उपयुक्तता का विवेचन करने वाली विधा आलोचना है। प्रस्तावना । प्रस्तुत पाठ ‘कबीर’ के माध्यम से द्विवेदी जी ने संत कबीर के व्यक्तित्व, उनके उपदेश, उनकी साधना, उनके स्वभाव के विभिन्न गुणों को बड़े ही रोचक ढंग से स्पष्ट किया है।

सारांश :

प्रस्तुत पूरक पठन में द्विवेदी जी ने कबीर के व्यक्तित्व, दार्शनिक विचार और उनकी साधना को दर्शाया है। हिंदी साहित्य के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। उन्होंने कबीर का प्रतिद्वंद्वी तुलसीदास को बताया है परंतु तुलसीदास व कबीर के व्यक्तित्व में बहुत अंतर था। यद्यपि दोनों ही भक्त थे परंतु दोनों स्वभाव, संस्कार और दृष्टिकोण में भिन्न थे।

मस्ती, फक्कड़ाना स्वभाव और सब कुछ झाड़-फटकारकर चल देने वाले तेज ने कबीर को हिंदी साहित्य का अद्वितीय व्यक्ति बना दिया था। कबीर की वाणी का अनुकरण नहीं हो सकता। उनकी वाणी वह लता है जो योग के क्षेत्र में भक्ति का बीज पड़ने से अंकुरित हुई थी। कबीर जी सर्वजगत के पाप को अपने ऊपर ले लेने की इच्छा से विचलित नहीं होते थे बल्कि और भी कठोर व शुष्क होकर ध्यान वैराग्य का उपदेश देते थे। अक्खड़ता कबीर का गुण नहीं है। जब वे योगी को संबोधन करते हैं तभी उनकी अक्खड़ता पूरे चढ़ाव पर होती है।

वे फक्कड़ स्वभाव के थे। अच्छा हो या बुरा, खरा हो या खोटा, जिससे एक बार चिपट गए उससे जिदंगी भर चिपटे रहो’ यह सिद्धांत उन्हें मान्य नहीं था। वे सत्य के जिज्ञासु थे और कोई माया-ममता उन्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती थी वे बिल्कुल मस्त-मौला थे। वे प्रेम के मतवाले थे परंतु अपने को उन दीवानों में नहीं गिनते थे जो अपनी प्रेमिका के लिए सिर पर कफ़न बाँधे फिरते हैं। उन्हें संसार की अच्छी-बुरी टिप्पणियों की परवाह नहीं थी। योग के संबंध में कबीर कहते हैं कि केवल शारीरिक और मानसिक कार्यों की नियमावली से दीखने वाली ज्योति जड़ चित्त की कल्पना मात्र है। केवल क्रिया बाह्य है, ज्ञान चाहिए।

बिना ज्ञान के योग व्यर्थ है। द्विवेदी जी ने कहा है कि कबीर के लिए साधना एक विकट संग्राम स्थली थी, जहाँ कोई विरला शूरवीर ही टिक सकता है। कबीर के मतानुसार प्रेम किसी खेत में नहीं उगता, किसी बाज़ार में नहीं बिकता, फिर जो कोई भी, इसे चाहेगा, पा लेगा। वह राजा हो या प्रजा, उसे सिर्फ एक शर्त माननी होगी, वह शर्त है सिर उतारकर धरती पर रख ले। जिसमें साहस व विश्वास नहीं, वह प्रेम की गली में नहीं जा सकता।

विश्वास ही प्रेम की कुंजी है जिसमें संकोच नहीं, दुविधा नहीं और कोई बाधा नहीं। कबीर युगावतारी शक्ति और विश्वास लेकर पैदा हुए थे और युगप्रवर्तक की दृढ़ता उनमें विद्यमान थी इसलिए वे युग प्रवर्तन कर सकें। द्विवेदी जी ने कबीर जी के व्यक्तित्व के लिए एक वाक्य में कहा है कि, “कबीर सिर से पैर तक मस्त-मौला थे, बेपरवाह, दृढ़, उग्र, फूल से भी कोमल और बज्र से भी कठोर थे।”

शब्दार्थ :

मुहावरे