Std 12 Hindi Chapter 5.1 Gurubani Question Answer Maharashtra Board
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.1 गुरुबानी Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.
Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.1 गुरुबानी Questions And Answers
12th Hindi Guide Chapter 5.1 गुरुबानी Textbook Questions and Answers
कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर
आकलन
   प्रश्न 1.
   
   (अ) संजाल पूर्ण कीजिए :
   
    
   
   उत्तर :
   
    
  
    
  
   (आ) कृति पूर्ण कीजिए :
   
   (a) आकाश के दीप
   
    
   
   उत्तर :
   
    
  
शब्द संपदा
   प्रश्न 2.
   
   लिखिए :
   
    
   
   उत्तर:
   
    
  
अभिव्यक्ति
   प्रश्न 3.
   
   (अ) ‘गुरु बिन ज्ञान न होई उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
   
   उत्तर :
   
   ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह ज्ञान हमें किसी-नकिसी व्यक्ति से मिलता है। जिस व्यक्ति से हमें यह ज्ञान मिलता है, वही हमारे लिए गुरु होता है। बचपन में बच्चे का पालन-पोषण कर उसे बड़ा करके बोलने-चालने और बोली-भाषा सिखाने का काम माता करती है। उस समय वह बच्चे की गुरु होती है। बड़े होने पर बच्चे को विद्यालय में शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त होता है।
  
पढ़-लिखकर। जीवन में पदार्पण करने पर हर व्यक्ति को किसी-न-किसी से अपने काम-काज करने का ढंग सीखना पड़ता है। इस तरह के लोग हमारे लिए गुरु के समान होते हैं। मनुष्य गुरुओं से ही सीखकर विभिन्न कलाओं में पारंगत होता है। बड़े-बड़े विद्वान, विचारक, राजनेता,। समाजशास्त्री, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री अपने-अपने गुरुओं से ज्ञान। प्राप्त करके ही महान हुए हैं। अच्छी शिक्षा देने वाला गुरु होता है। गुरु की महिमा अपरंपार है।
गुरु ही हमें गलत या सही में भेद करना सिखाते हैं। वे अपने मार्ग से भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाते हैं। यह सच है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता।
    
  
   (आ) ‘ईश्वर भक्ति में नामस्मरण का महत्त्व होता है’, इस विषय पर अपना मंतव्य लिखिए।
   
   उत्तर :
   
   ईश्वरभक्ति के अनेक मार्ग बताए गए हैं। उनमें सबसे सरल मार्ग ईश्वर का नाम स्मरण करना है। नाम स्मरण करने का कोई नियम नहीं है। भक्त जहाँ भी हो, चाहे जिस हालत में हो, ईश्वर का नाम स्मरण कर सकता है। अधिकांश लोग ईश्वर भक्ति का यही मार्ग अपनाते हैं।
  
उठते-बैठते, आते-जाते तथा काम करते हुए नाम स्मरण किया जा सकता है। भजन-कीर्तन भी ईश्वर के नाम स्मरण का ही एक रूप है। ईश्वर भक्ति के इस मार्ग में प्रभु के गुणों का वर्णन किया जाता है। इसमें धार्मिक पूजा-स्थलों में जाने की जरूरत नहीं होती।
गृहस्थ अपने घर में ईश्वर का नाम स्मरण कर उनके गुणों का बखान कर सकता है। इससे नाम स्मरण करने वालों को मानसिक शांति मिलती हैं और मन प्रसन्न होता है। कहा गया है – ‘कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि-सुमिर नर उतरें पारा।’ इसमें ईश्वर भक्ति में नाम स्मरण का ही महत्त्व बताया गया है।
रसास्वादन
   प्रश्न 4.
   
   ‘गुरुनिष्ठा और भक्तिभाव से ही मानव श्रेष्ठ बनता है’ इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए।
   
   उत्तर :
   
   गुरु नानक का कहना है कि बिना गुरु के मनुष्य को ज्ञान नहीं मिलता। मनुष्य के अंतःकरण में अनेक प्रकार के मनोविकार होते हैं, जिनके वशीभूत होने के कारण उसे वास्तविकता के दर्शन नहीं होते। वह अहंकार में डूबा रहता है और उसमें गलत-सही का विवेक नहीं रह जाता।
  
ये मनोविकार दूर होता है गुरु से ज्ञान प्राप्त होने पर। यदि गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और उनमें पूरा विश्वास हो तो मनुष्य के अंतःकरण के इन विकारों को दूर होने में समय नहीं लगता। मन के विकार दूर हो जाने पर मनुष्य में सबको समान दृष्टि से देखने की भावना उत्पन्न हो जाती है।
उसके लिए कोई बड़ा या छोटा अथवा ऊँच-नीच नहीं रह जाता। उसे मनुष्य में ईश्वर के दर्शन होने लगते हैं। उसके लिए ईश्वर की भक्ति भी सुगम हो जाती है। गुरु नानक ने अपने पदों में इस बात को सरल ढंग से कहा है। … इस तरह गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा और भक्ति-भावना से मनुष्य श्रेष्ठ मानव बन जाता है।
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान
   प्रश्न 5.
   
   (अ) गुरु नानक जी की रचनाओं के नाम :
   
   …………………………………………………………
   
   उत्तर :
   
   गुरुग्रंथसाहिब आदि।
  
   (आ) गुरु नानक जी की भाषाशैली की विशेषताएं:
   
   …………………………………………………………
   
   …………………………………………………………
   
   उत्तर :
   
   गुरु नानक जी सहज-सरल भाषा में अपनी बात कहने में माहिर हैं। आपकी काव्य भाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली और अरबी भाषा के शब्द समाए हए हैं। आपने पद शैली में रचना की है। ‘पद’ काव्य रचना की गेय शैली है।
  
   प्रश्न 6.
   
   निम्नलिखित वाक्यों में अधोरेखांकित शब्दों का वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
  
   (1) सत्य का
   
    मार्ग
   
   सरल है।
   
   उत्तर :
   
   सत्य के
   
    मार्ग
   
   सरल
   
    हैं
   
   ।
  
    
  
   (2)
   
    हथकड़ियाँ
   
   लगाकर बादशाह अकबर के दरबार को ले चले।
   
   उत्तर :
   
   
    हथकड़ी
   
   लगाकर बादशाह अकबर के दरबार को ले
   
    चले
   
   ।
  
   (3) चप्पे-चप्पे पर
   
    काटों
   
   की
   
    झाड़ियाँ
   
   हैं।
   
   उत्तर :
   
   चप्पे-चप्पे पर
   
    काँटे
   
   की
   
    झाड़ी
   
   है।
  
   (4) सुकरात के लिए यह जहर का
   
    प्याला
   
   है।
   
   उत्तर :
   
   सुकरात के लिए ये जहर के
   
    प्याले
   
   हैं।
  
   (5)
   
    रूढ़ि
   
   स्थिर
   
    है
   
   ,
   
    परंपरा
   
   निरंतर गतिशील है।
   
   उत्तर :
   
   
    रूढ़ियाँ
   
   स्थिर
   
    हैं
   
   ,
   
    परंपराएँ
   
   निरंतर गतिशील हैं।
  
   (6) उनकी समस्त
   
    खूबियों-खामियों
   
   के साथ स्वीकार कर अपना लें।
   
   उत्तर :
   
   उनकी समस्त
   
    खूबी-कमी
   
   के साथ स्वीकार कर अपना लें।
  
   (7)
   
    वे
   
   तो
   
    रुपये
   
   सहेजने में व्यस्त थे।
   
   उत्तर :
   
   
    वह
   
   तो
   
    रुपया
   
   सहेजने में व्यस्त था।
  
   (8) ओजोन विघटन के
   
    खतरे
   
   क्या-क्या हैं?
   
   उत्तर :
   
   ओजोन विघटन का
   
    खतरा
   
   क्या है?
  
   (9)
   
    शब्द
   
   में अर्थ
   
    छिपा होता है
   
   ।
   
   उत्तर :
   
   
    शब्दों
   
   में अर्थ
   
    छिपे होते
   
   हैं।
  
   (10) अभी से उसे ऐसा कोई
   
    कदम
   
   नहीं उठाना चाहिए।
   
   उत्तर :
   
   अभी से उसे
   
    ऐसे
   
   कोई कदम नहीं
   
    उठाने
   
   चाहिए।
  
Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.1 गुरुबानी Additional Important Questions and Answers
   
    कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए)
   
   
   
    पदयाश क्र. 1
   
   
   
    प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
   
  
कृति 1 : (आकलन)
   प्रश्न 1.
   
   उत्तर लिखिए : गुरु को महत्त्व न देने वाले ऐसे होते हैं –
   
   (1) ……………………………………..
   
   (2) ……………………………………..
   
   (3) ……………………………………..
   
   (4) ……………………………………..
   
   उत्तर :
   
   (1) व्यर्थ ही उगने वाले तिल की झाड़ियों के समान।
   
   (2) केवल ऊपर से फलते-फूलते दिखाई देते हैं।
   
   (3) उनके अंदर गंदगी और मैल भरा होता है।
   
   (4) लोग उनसे किनारा कर लेते हैं।
  
    
  
   प्रश्न 2.
   
   उत्तर लिखिए :
   
   (1) मन के लिए यह कहा गया है – ……………………………………..
   
   (2) संसार में ऐसे लोग विरले होते हैं – ……………………………………..
   
   (3) साधक को अपना ध्यान इसमें लगाना है – ……………………………………..
   
   (4) प्रभु के दर्शन के लिए आवश्यक है – ……………………………………..
   
   उत्तर :
   
   (1) दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण करना।
   
   (2) जो एक क्षण भी भगवान का नाम नहीं भूलते।
   
   (3) भगवान में।
   
   (4) साधक को अहंभाव का त्याग करना।
  
कृति 2 : (शब्द संपदा)
   प्रश्न 1.
   
   निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
   
   (1) तन = …………………………….
   
   (2) मसि = …………………………….
   
   (3) मति = …………………………….
   
   (4) विरले = …………………………….
   
   उत्तर :
   
   (1) (1) तन = शरीर।
   
   (2) मसि = स्याही।
   
   (3) मति = बुद्धि।
   
   (4) बिसरे = भूले।
  
   
    पद्यांश क्र. 2
   
   
   
    प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
   
  
कृति 1 : (आकलन)
   प्रश्न 1.
   
   कृति पूर्ण कीजिए :
   
   (a)
   
    
   
   उत्तर :
   
    
  
   (b)
   
    
   
   उत्तर :
   
    
  
    
  
   (2) संजाल पूर्ण कीजिए :
   
    
   
   उत्तर :
   
    
  
   
    रसास्वादन। मुद्दों के आधार पर
   
   
   
    कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए
   
  
   प्रश्न 1.
   
   निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर दोहो-पदों का रसास्वादन कीजिए:
   
   उत्तर :
   
   (1) रचना का शीर्षक : गुरुवाणी।
   
   (2) रचनाकार : गुरु नानक
   
   (3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत दोहों-पदों में गुरु के .. महत्त्व, ईश्वर की महिमा तथा प्रभु का नाम स्मरण करने से ईश्वर प्राप्ति की बात कही गई है।
  
   (4) रस-अलंकार :
   
   गगन में थाल, रवि-चंद्र दीपक बने।
   
   तारका मंडल जनक मोती।
   
   धूप मलयानिल, पवनु चैवरो करे।
   
   सकल वनराइ कुलंत जोति।।
  
यहाँ कहा गया है कि गगन ही थाल है; सूर्य-चंद्रमा ही दीपक हैं; तारका मंडल ही मोती है; मलयानिल ही धूप-गंध है; जंगल की समस्त वनस्पतियाँ फूल हैं। इसलिए रूपक अलंकार है।
(5) प्रतीक विधान : प्रस्तुत कविता में कवि ने गुरु का चिंतन न करने वालों तथा अपने आप को ही ज्ञानी समझने वालों को बिना संरक्षक वाले व्यक्ति कहा गया है। इसके लिए कवि ने निर्जन स्थान पर उगी हुई तिल्ली के पौधे का प्रतीक के रूप में उपयोग किया है।
(6) कल्पना : जीवन में गुरु का महत्त्व, कर्म की महानता तथा प्रभु के नाम का स्मरण ही प्रभु प्राप्ति का मार्ग है।
   (7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
   
   नानक गुरु न चेतनी मनि आपणे सुचेत।
   
   छूते तिल बुआड़ जिऊ सुएं अंदर खेत।
   
   खेते अंदर छुट्टया कहु नानक सऊ नाह।
   
   फली अहि फूली अहि बपुड़े भी तन विच स्वाह।
  
    
  
इन पंक्तियों में कवि ने गुरु का महत्त्व न समझने और अपने को ज्ञानी मानने वालों को मरुस्थल में पाई जानेवाली तिल्ली की फली में मिलने वाली राख कहा है, जो बहुत ही सटीक है।
(8) कविता पसंद आने का कारण : गुरु नानक ने इन पंक्तियों में यह बताया है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो गुरु को महत्त्व नहीं देते और अपने आप को ही ज्ञानी मान बैठते हैं। गुरु नानक जी ऐसे लोगों की तुलना उस तिल के पौधे से करते हैं, जो किसी निर्जन स्थान पर अपने आप उग आता है और उसको खाद-पानी देने वाला कोई भी नहीं होता। इसलिए उस पौधे का विकास नहीं हो पाता। ऐसे पौधे में फूल भी लगते हैं और फली भी लगती है, पर फली के अंदर दाने नहीं पड़ते, उसमें गंदगी और राख ही होती है। वैसी ही हालत बिना गुरु के मनुष्य की होती है। ऐसे लोगों का मानसिक विकास नहीं हो पाता।
1. अलंकार :
   निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए :
   
   (1) तरुवर की छायानुवाद सी,
   
   उपमा-सी-भावुकता-सी,
   
   अविदित भावाकुल भाषा-सी,
   
   कटी-छूटी नव कविता-सी।
  
   (2) उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
   
   विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भंग।
  
   (3) जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सो बीति बहार।
   
   अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार।
  
   (4) छिप्यो छबीली मुँह लसै नीले अंचल चीर।
   
   मनो कलानिधि झलमले, कालिंदी के तीर।
  
   (5) छाले परिबे के डरनि, सकै न हाथ छुवाय।
   
   झिझकत हिये गुलाब के सँवा सँवावत पाय।
   
   उत्तर :
   
   (1) उपमा अलंकार
   
   (2) रूपक अलंकार
   
   (3) अन्योक्ति अलंकार
   
   (4) उत्प्रेक्षा अलंकार
   
   (5) अतिशयोक्ति अलंकार।
  
2. रस :
   निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रस पहचानकर लिखिए :
   
   (1) भूषन बसन बिलोकत सिय के।
   
   प्रेम-बिबस मन, कंप पुलक तनु
   
   नीरज नयन नीर भरे पिय के।
   
   सकुचत, कहत, सुमिरि उर उमगत
   
   सील, सनेह सुगुन गुन तिय के।
  
   (2) लीन्हों उखारि पहार बिसाल
   
   चल्यौ तेहि काल, बिलंब न लायौ।
   
   मारुत नंदन मारुत को, मन को
   
   खगराज को बेगि लजायो।।
  
    
  
   (3) रामहि बाम समेत पठै बन,
   
   शोक के भार में भुंजौ भरत्थहि।
   
   जो धनु हाथ धरै रघुनाथ तो
   
   आज अनाथ करौं दशरत्थहि।
   
   उत्तर :
   
   (1) शृंगार रस
   
   (2) अद्भुत रस
   
   (3) रौद्र रस।
  
3. मुहावरे :
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
   (1) सिर खपाना।
   
   अर्थ : कठिन परिश्रम करना।
   
   वाक्य : कई साल तक सिर खपाने के बाद आखिरकार उस युवक को सी.ए. की डिग्री मिल ही गई।
  
   (2) उगल देना।
   
   अर्थ : भेद बता देना।
   
   वाक्य : पुलिस का डंडा पड़ते ही चोर ने चुराई गई संपत्ति को छिपाकर रखे जाने के स्थान की बात उगल दी।
  
   (3) कब्र में पैर लटकना।
   
   अर्थ : मरने के समीप होना।
   
   वाक्य : कोरोना के प्रसार से अनेक मरीजों के पैर कब्र में लटक गए हैं।
  
   (4) पापड़ बेलना।
   
   अर्थ : कड़ी मेहनत करना।
   
   वाक्य : आज जो लड़का जिलाधीश के पद पर आसीन है, इस पद तक पहुँचने में इसने बहुत पापड़ बेले हैं।
  
   (5) मरने की फुरसत न होना।
   
   अर्थ : कामों में बहुत व्यस्त होना।
   
   वाक्य : मुनीम जी तो अपने काम में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें मरने की भी फुरसत नहीं है।
  
4. काल परिवर्तन :
   प्रश्न 1.
   
   निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में सूचित काल में परिवर्तन कीजिए :
   
   (1) वे सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते थे। (सामान्य वर्तमानकाल)
   
   (2) दिन रात महान आरती होती है। (अपूर्ण भूतकाल)
   
   (3) अनहद नाद का वाद्य बज रहा है। (सामान्य भविष्यकाल)
   
   (4) श्रद्धा भक्त की सबसे बड़ी भेंट होगी। (पूर्ण भूतकाल)
   
   (5) तुम्हारे अनेक रंग हैं। (भविष्यकाल)
   
   उत्तर :
   
   (1) वे सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते हैं।
   
   (2) दिन-रात महान आरती हो रही थी।
   
   (3) अनहद नाद का वाद्य बजेगा।
   
   (4) श्रद्धा भक्त की सबसे बड़ी भेंट थी।
   
   (5) तुम्हारे अनेक रंग होंगे।
  
    
  
5. वाक्य शुद्धिकरण :
   प्रश्न 1.
   
   निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
   
   (1) गुरू के बिना ग्यान नहीं होता।
   
   (2) उसने भगवान की नाम का माला पहन ली है।
   
   (3) सभी जंगल की वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही है।
   
   (4) श्रद्धा ही भक्त का सबसे बड़ा भेट है।
   
   (5) तू दीन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर।
   
   उत्तर :
   
   (1) गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता।
   
   (2) उसने भगवान के नाम की माला पहन ली है।
   
   (3) जंगल की सभी वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही हैं।
   
   (4) श्रद्धा ही भक्त की सबसे बड़ी भेंट है।
   
   (5) तू दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर।
  
गुरुबानी Summary in Hindi
गुरुबानी कवि का परिचय
   
     
    
    कवि का नाम :
   
   गुरु नानक। (जन्म 15 अप्रैल, 1469; निधन 1539.)
  
प्रमुख कृतियाँ : गुरुग्रंथसाहिब आदि।
विशेषता : आप सर्वेश्वरवादी हैं और सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते हैं। आपके भावुक व कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर अनूठी अभिव्यक्ति की है। आप सहज-सरल भाषा द्वारा अपनी बात कहने में सिद्धहस्त हैं।
विधा : दोहे, पद। पदकाव्य रचना की एक गेय शैली है। इसके विकास का मूल स्रोत लोकगीतों की परंपरा रही है। हिंदी साहित्य में ‘पद शैली’ की दो परंपराएँ मिलती हैं – एक संतों की ‘शबद’ और दूसरी ‘कृष्ण भक्तों की परंपरा’।
    
  
विषय प्रवेश : मनुष्य के जीवन को उत्तम और सदाचार से परिपूर्ण बनाने के लिए गुरु का मार्गदर्शन अत्यंत आवश्यक होता है। इसी से शिक्षा प्राप्त कर मनुष्य उत्तम कार्य करता है। प्रस्तुत दोहों और पदों में गुरु नानक ने गुरु की महिमा, कर्म की महानता तथा सच्ची शिक्षा आदि के बारे में अपने अमूल्य विचारों से परिचित कराया है। वे गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को शिष्य की सबसे बड़ी पूँजी मानते हैं। उन्होंने प्रभु की महिमा का वर्णन करते हुए नाम स्मरण को प्रभु प्राप्ति का मार्ग बताया है और कर्मकांड और बाह्याडंबर का घोर विरोध किया है।
गुरुबानी कविता (पदों) का सरल अर्थ
(1) नानक गुरु न चेतनी …………………………………….. तन बिच स्वाह।
गुरु नानक कहते हैं कि जो लोग गुरु का चिंतन नहीं करते, गुरु से लापरवाही बरतते हैं और अपने आप को ही ज्ञानी समझते हैं, वे व्यर्थ ही उगने वाली तिल की उन झाड़ियों के समान होते हैं, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। वे ऊपर से फलतीफूलती दिखाई देती है, पर उन फलियों के अंदर गंदगी और मैल भरा होता है। लोग ऐसे लोगों से किनारा कर लेते हैं।
(2) जलि मोह धसि …………………………………….. अंत न पारावार।
गुरु नानक कहते हैं कि मोह को जलाकर और घिसकर स्याही बनाओ। अपनी बुद्धि को श्रेष्ठ कागज समझो। प्रेम-भाव की कलम बनाओ। चित को लेखक समझो और गुरु से पूछकर लिखो – नाम की स्तुति। साथ ही यह सच्चाई भी लिखो कि प्रभु का न कोई आदि है और न कोई अंत।
(3) मन रे अहिनिसि …………………………………….. मेले गरु संजोग।
हे मन! तू दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर। जिन्हें एक क्षण के लिए भी ईश्वर का नाम नहीं भूलता, संसार में ऐसे लोग विरले ही होते हैं। अपना ध्यान उसी ईश्वर में लगाओ और उसकी ज्योति से तुम भी प्रकाशित हो जाओ। जब तक तुझमें अहंभाव रहेगा, तब तक तुझे प्रभु के दर्शन नहीं हो सकते। जिसने अपने हृदय में भगवान के नाम की माला पहन ली है, उसे ही प्रभु के दर्शन होते हैं।
(4) तेरी गति मिति …………………………………….. दजा और न कोई।
हे प्रभो! अपनी शक्ति के सब रहस्यों को केवल तुम्हीं जानते हो। उनकी व्याख्या कोई दूसरा नहीं कर सकता है। तुम ही अप्रकट रूप भी हो और तुम ही प्रकट रूप भी हो। तुम्हारे अनेक रंग हैं। अनगिनत भक्त, सिद्ध, गुरु और शिष्य तुम्हें ढूँढ़ते फिरते हैं। हे प्रभु! जिन्होंने नाम स्मरण किया उन्हें प्रसाद (भिक्षा) में तुम्हारे दर्शन की प्राप्ति हुई है। प्रभु! तुम्हारे इस संसार के खेल को केवल कोई गुरुमुख ही समझ सकता है। प्रभु! अपने इस संसार में युग-युग से तुम्हीं बिराजमान रहते हो, कोई दूसरा नहीं।।
(5) गगन में थाल …………………………………….. शबद बाजत भेरी। (संसार में दिन-रात महान आरती हो रही है।)
आकाश की थाल में सूर्य और चंद्रमा के दीपक जल रहे हैं। हजारों तारे-सितारे – मोती बने हैं। मलय की खुशबूदार हवा वाला धूप (गुग्गुल) महक रहा है। वायु हवा से चँवर कर रही है। जंगल की सभी वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही हैं। हृदय में अनहद नाद का वाद्य बज रहा है। हे मनुष्य! इस महान आरती के होते हुए तेरी आरती का क्या महत्त्व है। अर्थात भगवान की असली आरती तो मन में उतारी जाती है। श्रद्धा ही भक्त की सबसे बड़ी भेंट है।
    
  
गुरुबानी शब्दार्थ
- बूआड़ = बुआई करना
- सउ = ईश्वर
- चितु = चित्त
- गुपता = अप्रकट, गुप्त
- सगल = संपूर्ण
- सुंजे = सूने
- मसु = स्याही
- अहिनिसि = दिन-रात
- जुग = युग
- भेरी = बड़ा ढोल